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NCERT Class 12 Political Science Chapter 2 Notes | अध्याय 2 दो ध्रुवीयता का अंत के नोट्स

Class 12 Political Science Chapter 2 Notes in Hindi

एनसीआरटी कक्षा 12 राजनीतिक विज्ञान अध्याय 2 के नोट्स 

इस ब्लॉग पोस्ट में एनसीआरटी कक्षा 12 की राजनीतिक विज्ञान की किताब समकालीन विश्व राजनीति के अध्याय 2 "दो ध्रुवीयता का अंत" के नोट्स सरल व स्पष्ट भाषा में दिए गएँ जो की आपको इस अध्याय को अच्छे से समझने में मदद करेंगे।

Class 12 Political Science Chapter 2 Notes | अध्याय 2 दो ध्रुवीयता का अंत के नोट्स

बर्लिन की दीवार

  1. बर्लिन की दीवार का निर्माण 13 अगस्त 1961 को हुआ था।
  2. ये पश्चिमी बर्लिन और पूर्वी बर्लिन को अलग अलग करती थी।
  3. 28 वर्षो तक ये दिवार खड़ी रही, इसकी  लम्बाई 150 किलोमीटर थी।
  4. 9 नवंबर 1989 को इसे गिरा दिया गया।

सोवियत संघ और सोवियत प्रणाली

सोवियत संघ (USSR- Union of Soviet Socialist Republics)

सोवियत संघ का उदय 1917 की रुसी बोल्शेविक क्रांति के बाद हुआ था। 30 दिसंबर 1922 को सोवियत संघ की स्थापना हुई थी। ये 15 गणराज्यो से मिलकर बना था, इनका गणराज्यों का प्रमुख रूस था।

सोवियत संघ की विचारधारा समाजवाद या साम्य वादी थी। इसमें सम्मिलित देशों को दूसरी दुनिया के देश भी कहा जाता था।

सोवियत प्रणाली

सोवियत प्रणाली पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में शुरू हुई थी, ये समाजवाद के आदर्शो और समतामूलक समाज की जरूरतों से प्रेरित थी।

सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी तथा इसमें अन्य राजनीतिक दलों और विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं थी।

सोवियत प्रणाली की महत्वपूर्ण बातें

  • इस खेमे का नेता समाजवादी सोवियत गणराज्य था। मिल्कियत पर राज्य का स्वामित्व था।
  • सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था बाकी दुनिया की तुलना में काफी विकसीत थी।
  • इनकी संचार प्रणाली बहुत ही उन्नत थी।
  • इसके पास विशाल ऊर्जा-संसाधन थे।
  • यातायात प्रणाली भी काफी उन्नत और विकसित थी।
  • घरेलू उपभोक्ता- उद्योग बहुत उन्नत था, सुई से लेकर कार तक सभी चीजों का उत्पादन होता था।
  • यहां की सरकार ने लोगों को जरूरत की चीजे जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य, और लोक कल्याण की अन्य चीजे रियायती दर पर मुहैया करती थी।

सोवियत संघ की समाप्ति

सोवियत संघ का विघटन दिसंबर 1991 में हुआ था तथा इसके साथ ही शीतयुद्ध का भी अंत हो गया था।

1991 में येल्तसिन के नेतृत्व में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्यों (रूस, बेला-रूस, और यूक्रेन) ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की तथा स्वतंत्र राज्यों ने राष्ट्र कुल(CIS) का गठन कर लिया।

सोवियत संघ के विघटन के कारण

सोवियत यूनियन की राजनीतिक-आर्थिक संस्था में अंदरूनी कमजोरी के कारण ये लोगो की आकांक्षाओं को पूरा न कर सकी।

सोवियत यूनियन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बिच हथियारों की होड़ थी जिसके कारण सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का ज्यादातर हिस्सा हथियार और सैन्य सामान पर लगाया।

सोवियत यूनियन ने अपने संसाधन पूर्वी यूरोप के पिछड़े देशो के विकास पर भी खर्च कर दिया। ताकि वो देश सोवियत संघ के नियंत्रण में रहे, इसका प्रभाव ये हुआ की सोवियत संघ पर इसके कारण आर्थिक दवाब बना और उसकी व्यवस्था इसको झेल नहीं पाई।

सोवियत संघ की जनता अपनी राज व्यवस्था की तुलना पश्चिमी देशों से करने लगे। जिससे उनको कमियों का अहसास हो गया और सोवियत यूनियन की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अपनी सरकार और राज व्यवस्था को शक की नजर से देखने लग गया और उस पर सवाल करने शुरू कर दिए।

कम्युनिस्ट पार्टी 70 सालो से वहां पर राज कर रही थी जिसके कारण अब वो जनता के प्रति कम जवाबदेह हो गई।

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम

सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध भी समाप्त हो गया और विश्व के लिए एक नई शांति का उद्भव हुआ तथा शीतयुद्ध के खत्म होते ही दूसरी दुनिया का अस्तित्व भी समाप्त हो गया।

अमेरिका अकेला महाशक्ति बन बैठा। जिससे पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रभाव बढ़ा।

विश्व में चल रही हथियारों की होड़ भी खत्म हो गई।

संयुक्त राष्ट्र संघ का उत्तराधिकारी रूस को बनाया गया।

शोक-थेरेपी को अपनाया।

अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी ताकतवर राष्ट्रों की सलाहकार बन गई।

शोक थेरेपी

शोक थेरेपी इंटेनशल मॉनेटरी फण्ड और वर्ल्ड बैंक द्वारा निर्देशित मॉडल था जिससे सोवियत संघ के देश अपना विकास कर सके। शोक थेरेपी का शाब्दिक अर्थ आघात पहुंचाकर उपचार करना है।

शोक थेरेपी की विशेषताएं

  1. इसके तहत राज्य के अधिकार वाली सम्पदा का निजी करण किया जायेगा। मिल्कियत पर राज्य का अधिकार न होकर निजी स्वामित्व हो।
  2. पूंजीवादी पद्धति से कृषि।
  3. मुक्त व्यव्सायिक व्यवस्था और आर्थिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा।
  4. सामूहिक फार्म को प्राइवेट फार्म में बदल दिया गया।

शोक थेरेपी के परिणाम

शोक थेरेपी  से रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा गई।

रूस की मुद्रा रूबल में नाटकीय ढंग से भारी गिरावट। आर्थिक तोर पर विषमता बढ़ी।

खाद्यान्न के सामान में संकट उत्पन्न हो गया।

राज्य के अधिकार वाले 90 उद्योगों को ओने पोन दामों में बेच दिया गया इसे "विश्व की सबसे बड़ी गराज सेल" (the biggest garage sale of world) के नाम से जाना जाता है।

मुद्रा स्पीति इतनी ज्यादा बढ़ गई की जिससे लोगों द्वारा की गई जमा पूंजी भी जाती रही।

समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को क्रम से नष्ट कर दिया गया। गरीबी बढ़ी।

माफिया वर्ग उभरा जिसने अधिकांश आर्थिक गतिविधियों को अपने कब्जे में लिया। धनी और गरीब लोगों के बिच बहुत गहरी आर्थिक असमानता आ गई।

शीतयुद्ध के दौरान अलग अलग गुट/दुनिया

प्रथम विश्व

संयुक्त राज्य अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोप के देशों एवं उनके साथी देशों को प्रथम विश्व या पहली दुनिया के देश कहा जाता था।

द्वितीय विश्व

पूर्वी यूरोप  देश जो की समाज वादी अर्थव्यवस्था वाले थे इनको द्वितीय विश्व या दूसरी दुनिया के देश कहा जाता था।

तृतीय विश्व

इनमें वो देश थे जो न तो नाटो में शामिल थे न ही सोवियत गुट के साथ। ये देश गुट निरपेक्ष आंदोलन के सदस्य भी थे। इन्हें ही तीसरी दुनिया के देश या तृतीय विश्व कहा जाता है।

तत्कालीन संघर्ष और तनाव

पूर्वी यूरोप के अधिकतर गणराज्य संघर्ष वाले क्षेत्र हैं। रूस के 2 गणराज्य चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आंदोलन चले। मास्को ने इनसे निपटने के लिए गैर जिम्मेदार तरीके से सैन्य बमबारी की लेकिन इससे आजादी की आवाज को न दबाया सका।

मध्य एशिया में तजाकिस्तान ने 10 वर्षों तक गृहयुद्ध चला।  इस जगह कई साम्प्रदायिक संघर्ष चल रहे हैं। यह के कुछ स्थानीय अर्मेनियाई अलग होकर अर्मेनिया में मिलना चाहते हैं। जार्जिया में 2 प्रान्त स्वतंत्रता चाहते हैं और गृहयुद्ध लड़ रहे हैं।

मध्य एशियाई गणराज्यो में पेट्रोलियम संसाधनों के विशाल भंडार हैं। जिसके कारण इन गणराजो को आर्थिक लाभ हुआ लेकिन इसी कारण ये क्षेत्र बाहरी ताकतों  और तेल कम्पन्यियो की आपसी प्रतिस्पर्धा का अखाडा बना चल रहा है।

11 सितम्बर 2011 की घटना के बाद से ही अमेरिका यहा पर अपना ठिकाना बनाना चाहता है। अमेरिका ने ठिकाने पाने की खातिर मध्य एशिया के सभी राज्यों को भुगतान किया। अफगानिस्तान और इराक के युद्ध के दौरान इन क्षेत्रो में अपने विमान उड़ाने की अनुमति ली।

भारत और सोवियत संघ

शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुत गहरे थे।

दोनों के बिच के आर्थिक संबंध

सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की ऐसे हालातो में मदद की जिस समय ऐसी मदद पाना मुश्किल था।

सोवियत संघ ने भिलाई, बोकारो और विशाखापट्नम के लोह इस्पात के कारखानों भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स जैसी मशीनरी के लिए तकनीकी और आर्थिक सहायता दी। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी उस समय सोवियत संघ ने रुपये को माध्यम बनाकर भारत के साथ ट्रेड किया।

भारत और सोवियत संघ के बिच राजनीतिक संबंध

1971 के भारत पाक के युद्ध के समय सोवियत संघ ने मदद की। और भारत ने सोवियत संघ की विदेश निति की अप्रत्यक्ष लेकिन महत्वपूर्ण तरीके से समर्थन दिया।

भारत और सोवियत संघ के सैन्य संबंध

सोवियत संघ ने उस समय भारत की सैन्य मदद की थी जब अन्य कोई शायद ही सैन्य साजों सामान की टेक्नोलॉजी भारत को देता।

सांस्कृतिक संबंध

हिंदी फिल्मों और भारतीय संस्कृति सोवियत में बहुत लोकप्रिय हैं। बहुत से भारतीय कलाकार और लेखकों ने सोवियत संघ की यात्रा की है।

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