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NCERT Class 12 political science chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन notes in Hindi

NCERT Class 12 political science chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन के नोट्स

इस अध्याय में हमने एनसीआरटी कक्षा 12 की राजनीतिक विज्ञान की किताब समकालीन विश्व राजनीति के अध्याय 8 के नोट्स दिए हैं। कक्षा 12 राजनीतिक विज्ञान अध्याय 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन में आप पर्यावरण प्रदूषण से विश्व पर पड़ने वाले प्रभाव एवं विभिन्न देशों व संगठनों द्वारा इसको रोकने के लिए किये गए प्रयास के बारे में पढ़ेंगे।पर्यावरण का संरक्षण एक महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि हमारी जीवनशैली और आर्थिक विकास के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का सुविधाजनक उपयोग होना भी जरुरी है, लेकिन इसकी ओर ध्यान न देने के कारण पर्यावरण को कई समस्याएं आई हैं, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, वन्यजन की शृंगारिकता, और प्रदूषण।

NCERT Class 12 political science chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन notes in Hindi

पर्यावरण क्या है?

आसपास की परिस्थितियां अथवा परिवेश जहां पर मानव रहता है, और अपना विकास करता है पर्यावरण कहलाता है। अथार्थ पर्यावरण वह सभी तत्त्व हैं जो हमारे चारों ओर मौजूद हैं, जिसमें जीवन चल रहा है। यह हवा, पानी, भूमि, वन्यजन, जीवों की समृद्धि, और सभी जीवों के साथी तत्त्वों को समाहित करता है।

पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य कारण

  • पेड़ों की अत्यधिक कटाई
  • मानव के लिए उपलब्ध संसाधनों का मानव अत्यधिक दोहन कर रहा है जिसके कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है
  • औद्योगिकरण बढ़ने के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है
  • जनसंख्या वृद्धि
  • कार्बन डाइऑक्साइड का ज्यादा उत्सर्जन

पृथ्वी सम्मेलन

1992 में रियो डी जनेरियो में पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केंद्रित सम्मेलन हुआ, इस सम्मेलन को पृथ्वी सम्मेलन कहा जाता है। इसमें 180 देश और हजारों स्वयंसेवी संगठनों में भाग लिया। वैश्विक राजनीति में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को इस समेल्लन से एक ठोस रूप मिला।

रियो सम्मेलन में यह बात सामने आई कि विश्व के धनी और विकसित देश ज्यादा प्रदूषण करते हैं।

उत्तरी गोलार्ध आदेशों की मुख्य चिंता ओजोन परत मैं छेद और वैश्विक ताप वृद्धि अथवा ग्लोबल वार्मिंग को लेकर थी।

इस पृथ्वी सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियम बनाए गए। जिन्हें एजेंडा 21 में शामिल किया गया। यह 21वीं सदी के लिए एक मानचित्र है कि कैसे विश्व को पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना है। इसके अनुसार विश्व को इस प्रकार का विकास का एक तरीका खोजना होगा जिससे पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे। इसको टिकाऊ विकास का एक तरीका कहा गया।

एजेंडा 21 की आलोचना

कुछ आलोचकों का कहना है कि एजेंडा 21 का झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है।

साझी संपदा क्या है ?

साझी संपदा उन संसाधनों को कहते हैं जिन पर किसी एक राष्ट्रीय राज्य का अधिकार नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। जैसे संयुक्त परिवार का चुल्हा, चारागाह, मैदान, कुंवा आदि।

मानवता की साझी विरासत

इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्र और बाहरी अंतरिक्ष शामिल है। इन संपदा पर किसी एक राज्य का अधिकार नहीं है बल्कि यह मानवता की साझी विरासत है।

साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियां

उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मसले को उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दिशा में पर्यावरण आज मौजूद है। जबकि दक्षिण के विकासशील देशों का तर्क है कि पर्यावरण को ज्यादातर नुकसान विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुंचा है, तो उनको इस नुकसान की भरपाई करना चाहिए। इसके अलावा विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और जरूरी है कि उन पर प्रतिबंध न लगाया जाए, जो विकसित देशों को लगाया जाना चाहिए। 1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को ही साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों का सिद्धांत कहा गया।

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पर्यावरण के मामले पर भारत

भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए और इसका अनुमोदन किया। भारत चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकोल की बाध्यताओं से छूट दी गई है।

2005 में हुई ग्रुप 8 के सदस्य देश के देशों की बैठक में भारत ने इस बात पर ध्यान दिलाया कि विकासशील देशों में ग्रीन हाउस गैसों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर विकसित देशों की तुलना में नाममात्र भी नहीं है।

राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन से संबंधित बुनियादी नियम आचार के अनुरूप भारत पर्यावरण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मसलों में ज्यादातर ऐतिहासिक उत्तरदायित्व का तर्क रखता है। इस तरह के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की ऐतिहासिक और मौजूदा जवाबदेही ज्यादातर विकसित देशों की है।

2000 तक भारत का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन प्रति व्यक्ति 0.9 तथा और अनुमान है कि 2030 तक है बढ़कर 1.6 टन में प्रति व्यक्ति हो जाएगा।

भारतीय सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए प्रयोग से संबंधित वैश्विक प्रयासों में शिरकत कर रही है। मिसाल के तौर पर भारत ने अपनी नेशनल ऑटो फ्यूल पॉलिसी के अंतर्गत वाहनों के स्वच्छतर इंजन अनिवार्य कर दिया है।

2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित हुआ इसमें ऊर्जा के ज्यादा कार्यस्थल पर ध्यान देने की बात कही गई। 2003 के बिजली अधिनियम के नवीनीकरण ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया।

भारत का मानना है कि दक्षेस में शामिल देश पर्यावरण के प्रमुख वैश्विक मसलों पर एक समान बोले ताकि क्षेत्र की आवाज में वजन हो सके।

भारत में बंगाल टाइगर को बचाने की मुहिम चल रही है क्योंकि इनकी संख्या लुप्त होने तक चली गई है।

अंटार्कटिका का इलाका 14000000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26% हिस्सा इसी महा देश के अंतर्गत आता है स्तरीय हिम का 90% हिस्सा और धरती पर मौजूद स्वच्छ जल का 70% हिस्सा इस महा देश में मौजूद है।

अवर कॉमन फ्यूचर क्या है ?

अवर कॉमन फ्यूचर रिपोर्ट 1987 में जारी की गई इसके अनुसार आर्थिक विकास के जो मौजूदा तौर तरीके हैं वह भविष्य में टिकाऊ साबित नहीं होंगे।

लिमिट्स टू ग्रोथ

यह पुस्तक 1972 में क्लब ऑफ रोमन समाज द्वारा लिखी गई। इसके अनुसार जिस प्रकार से दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है उसी प्रकार से संसाधन की संख्या कम हो रही है।

संसाधनों की राजनीति

आज विश्व की अर्थव्यवस्था ज्यादातर पेट्रोलियम तेल पर निर्भर है इस कारण पेट्रोलियम के लिए युद्ध और संघर्ष भी हुए हैं। खाड़ी देश विश्व के कुल तेल उत्पादन का 30 प्रतिशत उपलब्ध करवाते हैं, इस क्षेत्र में विश्व के ज्ञात तेल भंडार का 64 परसेंट हिस्सा मौजूद है। अकेले सऊदी अरब के पास तेल भंडार का एक चौथाई हिस्सा मौजूद है।

सऊदी अरब विश्व का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है तथा इसके बाद इराक तेल भंडार मे दूसरे नंबर पर है।

1950 और 1960 के दशक में इजराइल सीरिया और जॉर्डन के बीच स्वच्छ जल संसाधनों को हथियाने के लिए संघर्ष हुआ।

पर्यावरण आंदोलन

वर्तमान में विश्व भर में पर्यावरण आंदोलन सबसे ज्यादा जीवंत, विविधता पूर्ण, और ताकतवर सामाजिक आंदोलनों में शामिल किए जाते हैं। तीन दशकों से पर्यावरण की रक्षा के लिए विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में जन आंदोलन हुए हैं। जिनमें खनिज ,उद्योगों के नुकसान और वनों की रक्षा तथा बड़े बांधो के खिलाफ आंदोलन प्रमुख हैं

विश्व का पहला बांध विरोधी आंदोलन 1980 के दशक के शुरुआती तथा मध्यवर्ती वर्षों में ऑस्ट्रेलिया में फ्रैंकलिन नदी और इसके परिवर्तित वन को बचाने के लिए चला था।

भारत में बांधो के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा वनों की रक्षा हेतु चिपको आंदोलन प्रमुख है।

मूलवासी और उनके अधिकार

मूलवासी:- किसी जगह पर बहुत दिनों से रहते चले आ रहे लोग या वहां के मूल निवासी। (भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मूलवासी माना जाता है)

1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक परिभाषा दी जिसके अनुसार इन्हें ऐसे लोगों का वंशज बताया गया जो किसी मौजूदा देश में बहुत दशकों से रहते चले आ रहे हैं।

फिलीपींस के कॉर्डिलेरा क्षेत्र में 2000000 मूल निवासी रहते हैं, चिले में मापुशे नामक मूल वासियों की संख्या 10 लाख है। बांग्लादेश के क्षेत्र में 6 लाख आदिवासी बसे हैं। उत्तर अमरीका में मूल वासियों की संख्या 3 लाख 50 हजार है।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिहाज से इनको संवैधानिक सुरक्षा तो हासिल है लेकिन देश के विकास का इन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा आजादी के बाद से इनके विकास के लिए बहुत सी परियोजनाएँ चली बहुत से लोग आए बहुत से लोग गए लेकिन इस समुदाय का कुछ ज्यादा भला नहीं हुआ। मूल वासी समुदायों के अधिकार से जुड़े मुद्दे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में लंबे समय तक उपेक्षित रहे हैं लेकिन वर्तमान में इन पर ध्यान दिया जाने लगा है।

1975 में वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजींस पीपल का गठन हुआ संयुक्त राष्ट्र संघ ने सबसे पहले इस परिषद को परामर्श लाई परिषद का दर्जा दिया।

अराल में जल संकट

अराल के आसपास बसे हजारों लोगों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा क्योंकि पानी के विषाक्त होने से मत्स्य उद्योग नष्ट हो गया और वहां पर रहने वाले ज्यादातर लोगों का पैसा मत्स्य उद्योग था, पानी में नमक की सांद्रता के ज्यादा बढ़ जाने से पैदावार कम हो गई, उनके अनुसंधान हुए लेकिन इस समस्या का समाधान ना हो सका

NOTE:

UNFCCC: - यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज, इसका प्रकाशन 1992 में हुआ यह जलवायु के परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियम वार हैं .

UNEP: - संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम(यूनाइटेड नेशन एनवायरमेंट प्रोग्राम)

1959: - अंटार्कटिका संधि

1991: - अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार

SAARC: - दक्षेस

WWF: - वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड

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कक्षा 12 राजनीतिक विज्ञान अध्याय 7 नोट्स 

महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. वैश्विक राजनीति में पर्यावरण के बारे में बढ़ती चिंता के कोई दो कारण स्पष्ट करो

उत्तर:-

वर्तमान विश्व की उपजाऊ भूमि के एक बड़े भाग की कृषि योग्य क्षमता कम हो रही है जिससे खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ रही है

पृथ्वी के अपने वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है इससे पारिस्थितिक तंत्र व मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है

प्रश्न 2.ओजोन परत में छेद होने से पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा

उत्तर:-

पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंचने लगेंगे जिससे खतरनाक तथा जानलेवा बीमारियां उत्पन्न हो जाएंगी, साथ ही वैश्विक ताप वृद्धि की दर बढ़ेगी।

पराबैंगनी किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने से पेड़ पौधे तथा जीव जंतुओं पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ेगा

प्रश्न 3. रियो पृथ्वी सम्मेलन के किन्हीं दो परिणामों का उल्लेख कीजिए

उत्तर:-

इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जय विविधता एवं वानिकी के संबंध में कुछ नियम आचार निर्धारित हुए।

इस सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी की आर्थिक विकास का एक तरीका ऐसा होना चाहिए कि जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। इसे टिकाऊ विकास का तरीका कहा गया।

प्रश्न 4. वैश्विक राजनीति में पर्यावरणीय महत्व के किन्हीं चार मुद्दों का उल्लेख कीजिए

उत्तर:-

विश्व में अब कृषि भूमि का विस्तार करना असंभव है वर्तमान में उपलब्ध भूमि के एक बड़े भाग की उर्वरता लगातार कम होती चली जा रही है। जहां चरागाहों के चारे समाप्त होने के कगार पर हैं वही मछली भंडार भी निरंतर कम होता जा रहा है। इसी तरह जलाशयों का जलस्तर तेजी से घटा है और जल प्रदूषण बढ़ गया है। खाद्य उत्पादकों में भी लगातार कमी होती चली आ रही है।

सन 2016 में जारी संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों की 68.3 करोड़ जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं होता है तथा यहां की 2 अरब 40 लाख करोड़ की आबादी साफ सफाई की सुविधा से वंचित है। इस कारण से लगभग 3000000 से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष असमय काल के गाल में समा जाते हैं।

वनों की कटाई से लोग विस्थापित हो रहे हैं वनों की कटाई का प्रभाव जेव प्रजातियों पर भी पड़ रहा है और अनेक जीव जंतु एवं पेड़ पौधे की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है।

पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन की मात्रा लगातार घट रही है जिसके फलस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र तथा मानवीय स्वास्थ्य पर गंभीर संकट आ गया है।

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